Tuesday 8 December 2015





मुझे उतनी प्रेम पत्र मत लिखना
मैं तो भला , अनपढ़ हूँ

मुझ से उतना मोहब्बत ना करना
मैं तो बड़ा बदनसीब हूँ

तू मेरे विचार धारा पसंद करती हो
मुझे नहीं

तुझे मेरे शायरी से इश्क़ चल रहा है
मुझ से नहीं

मेरे सपने कभी न देखना
मैं वैसा नहीं हूँ जैसा तुम्हे नजर आता हूँ

अरे , किसी बेवफा का शिकार , और किसी का
मेहबूबा कैसे बन सकता ?

तुम्हारी हमदर्दी की दवा देकर
मेरे घावों का इलाज नहीं करना

वहाँ बाग़ बगीचे पैदा नहीं होते
जहाँ मुर्दों का अंतिम संस्कार किये जाते

मेरे लिए इधर उधर मत ढूंढना
मैं तो वहाँ नहीं मिलता जहाँ तुम देखती हो

मैं तो कब का मर चूका हूँ , और
भूत बनकर हवा में उड़ता रहता हूँ

मुझ में भी इनसानियत देखनेवाली
तेरी मासूमियत को इज्जत करता हूँ , और
लाख लाख शुक्र अदा करता हूँ







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